चमचा होने में कोई बुराई है क्या. पिछले हफ्ते एक साइट पर चल रही टिप्पणियों के घमासान में मैंने यह लिखा था. लेकिन उसके बाद से ही यह सोच रहा था कि चमचागीरी क्या है और चमचा कैसे बना जाता है. तो अपने इस ब्लॉग पर एक साल से भी ज्यादा समय के बाद लिख रहे पहले पोस्ट पर चमचागीरी पर अपनी समझदारी की बात करते हैं.
स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई-लिखाई के वक्त से ही आपके साथ चमचागीरी नाम का यह हसीन हादसा हो सकता है. किसी शिक्षक का विशेष अनुराग आपको उनका चमचा बना सकता है. मैट्रिक, इंटर या बीए या उससे ऊपर की तमाम पीएचडी और डी लिट् जैसे उपाधि आप अर्जित ज्ञान के दम पर पाते हैं. लेकिन इस उपाधि के लिए अर्जित ज्ञान काम नहीं आता. इसके लिए जिला, प्रांत या राष्ट्रीय स्तर पर कोई प्रतियोगिता नहीं होती कि किसी को जिला, प्रांत या देश का सबसे बड़ा चमचा ठहराया जा सके. पढ़ाई-लिखाई में जो मेहनत करनी होती है, उस लिहाज से देखें तो चमचागीरी बहुत आसान विधा है और कई जगह इसे अपने ज्ञान के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल में लाया भी जा सकता है.
चमचा बनने के लिए अपने स्तर से बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं होती. आप विद्यार्थी हैं तो अपने किसी शिक्षक की ज्यादा तारीफ शुरू कर दीजिए. अगर कोई सहपाठी कहता है कि उनकी क्लास में उसके दिमाग की दही बन जाती है और आप उससे मीठी या खट्टी बहस करते हैं और यह साबित करना चाहते हैं कि आपके पसंद के गुरुजी जबर्दस्त पढ़ाते हैं तो आप चमचा बन गए मानिए. इसके लिए आपके गुरु और आपके बीच किसी इकरारनामे की जरूरत नहीं है.
पढ़ाई के बाद नौकरी का काम शुरू होता है. यहां अपने से वरिष्ठ किसी भी अधिकारी की तारीफ कीजिए या उनके विरोधियों की बातों में चाय की चुस्कियों के दौरान हां की बजाय ना में बात करना शुरू कर दीजिए, चमचा बन गए आप. अगर ऐसे में आपका समयवद्ध वेतन बढ़ गया या प्रोमोशन हो गया तो अंधों के हाथ बटेर ही लग गई समझो. फिर तो आपसे जले-भुने लोग घूम-घूम कर गाएंगे कि चमचागीरी भी कोई चीज होती है और उसका इनाम तो मिलना ही चाहिए.
सामाजिक और राजनीतिक जीवन में भी चमचागीरी की उपाधि हासिल करने के लिए यही रामवाण है. उम्र, पद या प्रतिष्ठा में अपने से बड़े किसी भी शख्स की तारीफ कीजिए और आलोचना का जवाब दीजिए, चमजागीरी का खिताब हासिल कर लेंगे.
मेरे विचार से अगर कोई आदमी यह कहता है कि वह किसी का चमचा नहीं है या नहीं रहा और न रहेगा तो वह सरासर झूठ बोल रहा है. मैं उसे चुनौती देता हूं कि वो अपना नाम, पता और स्कूल या कंपनी का नाम बताए, उसकी चमचागीरी का प्रमाण सिर्फ उसे मेल करके बता दूंगा. क्योंकि मेरा मानना है कि चमचागीरी प्राकृतिक चीज है. इस शब्द को हेय दृष्टि से देखने की जरूरत नहीं है. यह कोई प्लेग या हैजा नहीं है कि चमचागीरी सुनकर छी-छी बोला जाए या चमचा लोगों से दूर रहा जाए. इस प्राकृतिक गुण के लिहाज से मैं एक-दो दर्जन से ज्यादा लोगों का चमचा तो हूं ही. गिनती में कुछ कमी हो सकती है.
मेरी तो मनमोहन सिंह सरकार से मांग है कि देश में एक राष्ट्रीय चमचा आयोग का गठन होना चाहिए और उसमें सोनिया गांधी के आस-पास रहकर विकसित हो रहे नेताओं को सदस्य बनाना चाहिए. इस आयोग को राष्ट्रीय स्तर पर हर साल एक परीक्षा का आयोजन करना चाहिए और हर साल 15 अगस्त के दिन देश भर से चुने गए सौ चमचों को सम्मानित करना चाहिए. चमचागीरी को सम्मान दिलाने की लड़ाई शुरू करने का समय आ गया है क्योंकि चमचा तो हममें से हर कोई किसी न किसी का है. जो मेरी राय से इत्तेफाक नहीं रखते वो यह कबूल करने डरते हैं कि वो भी चमचा हैं.
1 comment:
Likhte achhe hai aap parantu Aap neta ban jaiye, jaise reporter ban gaye, yah bihar ka door bhagya hai jo bhi satta mein aate hai wo apna vikas pehle karte hai rajya to gaya bhaar mein...
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