Friday, December 30, 2011

एक अन्नाभक्त का एकमात्र सवाल

अन्ना. बाकी सब तो ठीक है लेकिन आपसे सवाल पूछने से पहले ये बताना जरूरी है कि मेरे पास तीन बैंक खाते हैं जिनमें 200, 600 और 34000 रुपए जमा हैं. बटुए में हजार के करीब होगा. ये बताना अब इसलिए जरूरी है क्योंकि अन्ना के जो लोग उनके खिलाफ बोलते हैं उन्हें मैं भी कांग्रेसी पैसे से खरीदा गया आदमी मानता और बताता रहा हूं. एक घर है जो बैंक और शुभचिंतकों से मिला उपहार है. जो धन है, सफेद है. काला कुछ नहीं है सिवा रंग के. मेरे सवाल का जवाब कुछ भी हो, हर हालत में मैं आपके साथ हूं और साथ ही रहूंगा क्योंकि मुझे इस बात का आभास है कि आप कांग्रेस, भाजपा, लेफ्ट और खुदरे दलों के किन मक्कारों से जूझ रहे हैं. फिर भी ये बताना जरूरी है कि रणनीतिकार किस तरह से आपको चूना लगा रहे हैं.

सबसे पहले एक बात जो सवाल नहीं है. 11 दिसंबर के एक दिन के अनशन की कोई जरूरत बनती थी नहीं जब संसद सत्र चल रहा है और आपने 27 दिसंबर से आमरण अनशन की धमकी दे ही रखी है. बावजूद अगर अनशन करना ही था और अलग-अलग दलों के नेताओं को मंच देकर लोकपाल पर बहस करवानी थी तो ये मुंबई के आजाद मैदान या लखनऊ के किसी स्टेडियम में ज्यादा बेहतर तरीके से हो सकता था. आपका दिल्ली आना बहुत जरूरी नहीं था. आंदोलन को फैलाने के भी तो उपाय होंगे या नहीं. खैर, आप बड़े हैं, ज्यादा अनुभवी हैं. कुछ सोच-समझकर ही आए होंगे.

लेकिन मैं जिस बात से परेशान हूं और यही मेरा सवाल है कि आपने जब 27 दिसंबर से आमरण अनशन पर बैठने की चेतावनी इस अहंकारी सरकार को दे ही रखी है तो फिर ये कहने का क्या औचित्य है कि आप अगले साल होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करने जाएंगे. मेरा सवाल नीतिगत और व्यवहारिक है.

आप जब 27 दिसंबर को आमरण अनशन पर बैठ जाएंगे तो तय है कि उठेंगे तभी जब सरकार आपकी बात मान लेगी या फिर रामलीला मैदान में ही प्राण त्याग देंगे. तो ऐसे में आप कैसे जाएंगे प्रचार करने जब आप बचेंगे ही नहीं. और अगर आप अनशन तोड़ते हैं तो स्वभाविक है कि सरकारी मान-मनौव्वल के बाद ही उठेंगे जो समझौते जैसा होगा, सरकार के झुकने जैसा होगा तो फिर प्रचार की जरूरत ही क्या रह जाएगी.

बस मुझे आप यही समझा दीजिए कि क्या आपको पता है कि अनशन के बाद भी ये सरकार नहीं झुकने जा रही या फिर आपने तय कर लिया है कि सरकार लोकपाल पर आपकी बात माने या ना माने, आप कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करेंगे.

और अगर आप प्रचार करने जाएंगे तो अनशन पर से उठेंगे कैसे, कौन उठाएगा आपको, किस बहाने से आप तोड़ेंगे अनशन. अगर जन लोकपाल से कम पर अनशन टूटता है तो ये हमारे साथ धोखा होगा और सरकार के मानने के बाद भी गए तो ये भी धोखा होगा.

कुछ लोग कहेंगे कि अन्ना ने तो ये कहा है कि अगर सरकार आमरण अनशन से नहीं मानी तो हम प्रचार करेंगे लेकिन भाई साहब अन्ना ने तो कार्यक्रम की रूपरेखा बता दी है. पहले आमरण अनशन करेंगे और तब भी सरकार नहीं मानी तो प्रचार करेंगे. आमरण अनशन से उठेंगे तब न प्रचार करेंगे.

बस यही मुझे कोई समझा दे कि अन्ना आमरण अनशन से बिना मांग पूरी हुए कैसे उठेंगे. अन्ना की नीयत पर कोई सवाल नहीं है. सवाल रणनीति बनाने वालों पर है. जब आप आमरण अनशन पर जा रहे हो तो आगे के किसी कार्यक्रम की घोषणा हास्यास्पद है. आपको कैसे मालूम कि सरकार नहीं मानेगी. अगर नहीं मानेगी तो आमरण अनशन करने वाला अनशन तोड़कर कैसे चुनाव में प्रचार करेगा.


प्रतिरोध पर 12 दिसंबर, 2011 को प्रकाशित

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