कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी नेता के चले जाने की ख़बर पर यक़ीन नहीं होता. जी में आता है कि कोई कह दे कि ये सच नहीं हैं. आज एक बार फिर दिल ऐसी ही बातें कर रहा है.लेकिन कोई कहता भी नहीं है कि रावलपिंडी में 27 दिसंबर को जो हादसा हुआ, उसके हताहतों में बेनज़ीर भुट्टो नहीं हैं.
ऐसा इससे पहले राजीव गाँधी और प्रमोद महाजन के चले जाने पर महसूस हुआ था. लगता है कि मेरे बाप-दादा के घर के किसी पड़ोसी की हत्या हो गई है. लेकिन कड़वा सच यही है कि बेनज़ीर भुट्टो नहीं रहीं. मुशर्रफ़ के बयान आने तक मुझे भरोसा नहीं हो रहा था. चुनाव तैयारियों में आगे बढ़ रही बेनज़ीर के क़दम दरिंदों ने रावलपिंडी की एक सभा के बाद थाम लिए. लोकतंत्र की बहाली का जो काम बेनज़ीर अधूरा छोड़ गई हैं, वहां के लोग अग़र उसे पूरा नहीं कर पाए तो यह उस चमत्कारी नेता की शहादत का अपमान होगा.
वे हमारे बीच नहीं हैं. मैं तो अनुमान भी नहीं लगा सकता कि उस देश के लोगों पर क्या बीत रही होगी जिन्हें बेनज़ीर में अपना बेहतर भविष्य नज़र आ रहा था. राजीव जी, महाजन जी और बेनज़ीर जी को किसी न किसी हत्यारे ने हमसे छीना. तीनों कई तरह के विवादों में रहे लेकिन अपनी पीढ़ी के बीच उनका होना किसी सपने के पूरे होने की उम्मीद कायम रखता था. पाकिस्तान के लोगों से आतंकियों ने सिर्फ बेनज़ीर को नहीं छीना है बल्कि उनके बेहतर कल की उम्मीदें छीनी हैं. यह देश कल कैसा होगा, कैसे बढ़ेगा, इस पर क़यास लगाना फ़िजूल है क्योंकि मैंने सुना है कि वहां एक कहावत चल पड़ी है कि "देश का क्या होगा, यह सिर्फ अल्लाह को या मुशर्रफ को मालूम है."
भारत ने भी पड़ोस में एक ऐसा नेता खोया है जिसे वहां के दूसरे नेताओं से ज़्यादा भरोसा हासिल था. मेरी शत-शत श्रद्धांजलि....
1 comment:
आप की संवेदनाओं के लिए साधुवाद। सच तो यह है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में शामिल होना होगा।
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