Monday, January 28, 2008

क्या कर रहे हैं जयप्रकाश बाबू...!

मेरे शहर से कल अमर भैया आए हैं. पूरा नाम अमरेंद्र कुमार अमर है. हम दोनों ने कभी साथ में पत्रकारिता की थी, कस्बाई. वैचारिक प्रतिबद्धता के लिहाज से हम दोनों आमने-सामने हैं. वे तब प्रसार भारती से जुड़े थे. आजकल भारतीय जनता पार्टी के जिला महासचिव हैं. पेशे से वकील हैं. आपराधिक मामलों में बचाव पक्ष की ओर से कोर्ट में पेश होते हैं. दैनिक जागरण में क्राइम की खबरें भी देखने के नाते भी हमारे संबंध बहुत गहरे हैं.

बेगूसराय के हम पत्रकार मित्र उन्हें अध्यक्ष जी ही बोलते हैं. हमने बुजुर्ग लोगों के प्रेस क्लब की सदस्यता न मिलने पर जिला पत्रकार संघ बनाया था और उसके वे पहले अध्यक्ष चुने गए.

सोमवार से शुरू हो रही भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में शामिल होने के लिए उनके साथ जिलाध्यक्ष श्रीबाबू और पूर्व जिलाध्यक्ष शंकर दा भी आए हैं. अमर भैया के ठरहने की ज्यादा बेहतर व्यवस्था कहीं और थी लेकिन मेरे आग्रह को वे टाल नहीं सके और लॉजनुमा व्यवस्था वाले मेरे घर पर रुके हैं. श्रीबाबू और शंकर दा पहले से तय जगह पर रुके हैं.

उनकी निर्धारित व्यवस्था से उन्हें अलग रोकने के लिए जुर्माना तय हुआ कि मैं उन्हें दोनों दिन उनके सम्मेलन स्थल रामलीला मैदान पहुँचाऊँगा.

सोमवार को भाजपा की बैठक के पहले दिन अमर भैया को रामलीला मैदान पहुँचाने के बाद जब मैं लौट रहा था तो टाइम्स ऑफ इंडिया के सामने सड़क पर मेरी नजर दिल्ली के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल जी की औसत आकार की एक होर्डिंग पर पड़ी.

अग्रवाल साहब ने इस होर्डिंग के जरिए दिल्ली के लोगों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ दी हैं. उनके ऐसे कई और होर्डिंग भी शहर में लगे होंगे लेकिन मुझे फिलहाल एक ही दिखा है. इस होर्डिंग के नीचे एक कूरियर कंपनी ब्लेज़फ्लैश के बारे में भी कुछ-कुछ लिखा है.

कांग्रेस की "विश्वसनीयता" को ब्लेज़फ्लैश भुना रही है या ब्लेज़फ्लैश की "संपन्नता" को कांग्रेसी नेता, इस पर मेरी तरफ से कहने के लिए कुछ नहीं है. ये चीजें बड़ी आम हो गई हैं. वैसे, हो यह भी सकता है कि इस कूरियर कंपनी के मालिक वे खुद हों या इस होर्डिंग को लगाने से पहले उनसे पूछा न गया हो और कंपनी वाले ने अपनी तरफ से उनके नाम से कुछ कर दिया हो.

मेरे मन में जो सवाल है वह यह कि क्या देश की मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी के पास पैसों की इतनी कमी हो गई है कि उसके नेताओं को "प्रचार" सामग्री में प्रायोजक संग हिस्सेदारी करनी पड़े. अब अगर कल को जयप्रकाश बाबू को केंद्र में संचार मंत्री बनने का मौका मिल जाए और सरकार डाक विभाग में विनिवेश की सोच रही हो तो इसका फायदा कौन उठाएगा, कहने की जरूरत नहीं है.

जयप्रकाश जी की तस्वीर अखबारों और टीवी के अलावा इस शहर के छोटे-बड़े नेताओं के पोस्टर के साथ तमाम इलाकों में हैं. कुछ दिनों पहले तक जिन लोगों ने रामबाबू शर्मा के नाम की होर्डिंग लगा रखी थी, अब वे जयप्रकाश जी की जय-जयकार कर रहे हैं. लोग बदल जाते हैं, नेता बदल जाते हैं, समर्थक भी लेकिन इस तरह के "समर्थक" नहीं बदलते और पाई-पाई वसूलने की ताक में, जब तक आस हो, तब तक लगे रहते हैं.

थोड़ी कल्पना करें और यह चलन और आगे तक जाए तो क्या-क्या हो सकता है....

तालकटोरा स्टेडियम में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) की महाधिवेशन हो और मंच पर बैनर के नीचे प्रायोजक के बतौर रिलायंस इंडस्ट्रीज या शाहरुख खान की किसी कंपनी का नाम हो.

भाजपा का ही इसी तरह का कोई सम्मेलन हो तो मंच पर फिर रिलायंस इंडस्ट्रीज का नाम मिल सकता है.

समाजवादी पार्टी के सम्मेलन में सहारा का बैनर नजर आ सकता है. ऐसे में कम्युनिस्टों का सम्मेलन यमुना किनारे ही हो पाएगा.

कुछ दिनों में इस तरह के राजनीतिक आयोजनों में मीडिया पार्टनर भी नजर आ सकते हैं, वैसे ही जैसे मल्टीप्लेक्सों में फिल्म शुरू होने के बाद कुछ के नाम दिखाए जाते हैं.

जया अम्मा और करुणा बाबा को छोड़ ही दीजिए क्योंकि उनके तो चैनल खुलकर चल रहे हैं.

लेकिन घोषित रूप से कांग्रेस के मीडिया पार्टनर कौन-कौन हो सकते हैं, भाजपा के प्रचार का जिम्मा कौन सही से निभा सकता है, सपा की गारंटी कौन ले सकते हैं और और बसपा के हाथी का महावत कौन बन सकता है....राजद, लोजपा, जदयू...भी चुनौती कायम रखने के लिए क्या संभावित मीडिया पार्टनर पैदा कर सकते हैं.

आप तो जनता-जनार्दन हैं, अगर ऊपर दिए गए सवालों के जवाब मालूम हों तो मात्र छह रुपए खर्च करके संबंधित चैनल या अखबार को अपना एसएमएस भेजें. देश का भविष्य संवारने में आपका यह एसएमएस उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है जो आपने भारत रत्न के दावेदारों के समर्थन में किए थे.

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