Sunday, December 30, 2007

सहारा समय ने बनाया फ़हीम को बेनज़ीर का वारिस...

सहारा समय परिवार के वारिसों को या तो यह नहीं मालूम है कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने किसे बेनज़ीर भुट्टो का राजनीतिक वारिस चुना है या फिर लरकाना की जिस बैठक के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता मख़दूम अमीन फ़हीम ने ख़ुद पत्रकारों से कहा कि बेनज़ीर के इकलौते बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी को उनलोगों ने अपना नया अध्यक्ष चुन लिया है, उसमें सहारा समय का कोई ख़ास सूत्र मौज़ूद था.


रात के बारह बज़े जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूं तब तक पूरी दुनिया की हरेक साइट इस बात को दिखा और बता रही है कि बिलावल को बेनज़ीर का राजनीतिक वारिस चुन लिया गया है.

बेनज़ीर ने अपनी वसीयत में पति आसिफ अली ज़रदारी को उत्तराधिकारी मनोनीत किया था लेकिन बैठक में ख़ुद ज़रदारी ने ही बिलावल के नाम का प्रस्ताव रखा और पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने उसका अनुमोदन कर दिया.

अलबत्ता, पार्टी ने 19 साल के बिलावल की उम्र और उसकी पढ़ाई का ख्याल करते हुए पार्टी में दो सह-अध्यक्ष बनाए हैं. एक तो बिलावल के पिता और बेनज़ीर के पति आसिफ अली जरदारी हैं और दूसरे वो फ़हीम साहब, जिन्हें सहारा समय परिवार पीपीपी की क़मान थमा रहा है. हाँ, पार्टी ने ये कहा है कि अगर जनवरी में चुनाव हों और वह जीत जाती है तो इस वक़्त प्रधानमंत्री के उम्मीदवार फ़हीम साहब होंगे.

ख़बरें तो इससे आगे पहुँच चुकी हैं. बैठक के बाद बिलावल के अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा के दौरान आसिफ अली जरदारी ने पीपीपी के चुनाव में हिस्सा लेने का निर्णय सुनाया और नवाज़ शरीफ़ से भी चुनाव में भाग लेने की अपील की.

नवाज़ की पार्टी के कुछ नेताओं ने देर रात बयान दिया है कि वे भी 8 जनवरी के चुनाव में हिस्सा लेंगे. ये और बात है कि पीएमएल क्यू और ख़ुद राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ शायद चुनाव को टालने का विचार रखते हों.

पता नहीं, सहारा समय का समय ख़राब चल रहा है या ख़बरों को इसी तरह से पेश कर वह ख़ुद को सबसे अलग साबित करना चाहता है.

आप भी पढ़ें ये ख़बरें......

अंग्रेज़ी साइटः-http://www.saharasamay.com/samayhtml/articles.aspx?newsid=91883

हिन्दी साइटः-
http://www.saharasamay.com/flash/hindi/#fullstory?id=110079

Thursday, December 27, 2007

कोई कह दे कि ये सच नहीं है...

कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी नेता के चले जाने की ख़बर पर यक़ीन नहीं होता. जी में आता है कि कोई कह दे कि ये सच नहीं हैं. आज एक बार फिर दिल ऐसी ही बातें कर रहा है.लेकिन कोई कहता भी नहीं है कि रावलपिंडी में 27 दिसंबर को जो हादसा हुआ, उसके हताहतों में बेनज़ीर भुट्टो नहीं हैं.

ऐसा इससे पहले राजीव गाँधी और प्रमोद महाजन के चले जाने पर महसूस हुआ था. लगता है कि मेरे बाप-दादा के घर के किसी पड़ोसी की हत्या हो गई है. लेकिन कड़वा सच यही है कि बेनज़ीर भुट्टो नहीं रहीं. मुशर्रफ़ के बयान आने तक मुझे भरोसा नहीं हो रहा था. चुनाव तैयारियों में आगे बढ़ रही बेनज़ीर के क़दम दरिंदों ने रावलपिंडी की एक सभा के बाद थाम लिए. लोकतंत्र की बहाली का जो काम बेनज़ीर अधूरा छोड़ गई हैं, वहां के लोग अग़र उसे पूरा नहीं कर पाए तो यह उस चमत्कारी नेता की शहादत का अपमान होगा.

वे हमारे बीच नहीं हैं. मैं तो अनुमान भी नहीं लगा सकता कि उस देश के लोगों पर क्या बीत रही होगी जिन्हें बेनज़ीर में अपना बेहतर भविष्य नज़र आ रहा था. राजीव जी, महाजन जी और बेनज़ीर जी को किसी न किसी हत्यारे ने हमसे छीना. तीनों कई तरह के विवादों में रहे लेकिन अपनी पीढ़ी के बीच उनका होना किसी सपने के पूरे होने की उम्मीद कायम रखता था. पाकिस्तान के लोगों से आतंकियों ने सिर्फ बेनज़ीर को नहीं छीना है बल्कि उनके बेहतर कल की उम्मीदें छीनी हैं. यह देश कल कैसा होगा, कैसे बढ़ेगा, इस पर क़यास लगाना फ़िजूल है क्योंकि मैंने सुना है कि वहां एक कहावत चल पड़ी है कि "देश का क्या होगा, यह सिर्फ अल्लाह को या मुशर्रफ को मालूम है."

भारत ने भी पड़ोस में एक ऐसा नेता खोया है जिसे वहां के दूसरे नेताओं से ज़्यादा भरोसा हासिल था. मेरी शत-शत श्रद्धांजलि....