महिला विरोधी न होते हुए भी मेरी दिली तमन्ना थी कि शेखावत ही राष्ट्रपति बनें. पता नहीं उनसे कब और
क्यों प्यार हो गया. अमिताभ से लंबे, फरदीन से भी ज्यादा खूबसूरत, दमदार आवाज. किसी पर फिदा होने के लिए इतना काफी है. मेरा प्यार सहानुभूति का पात्र बन गया है. राजभवन से सीधे रायसीना हिल पर धावा बोलने के लिए जैसे ही सोनिया जी ने प्रतिभा पाटिल को हरी झंडी दिखाई, वो मेरी नजर में ललिता पवार हो गईं. अभी हाल तक वो मुझे आयशा टॉकिया जैसी खूबसूरत नजर आया करती थीं. सब गोबर हो गया।
अब तो राहुल भैया की अम्मां मुझे इंदिरा दादी से भी भारी होशियार लगने लगीं हैं. उम्मीद थी कि जैसे सोनिया जी ने त्याग किया था, भांति-भांति के आरोपों से परेशान होकर प्रतिभा जी खुद ही ना बोल देंगी. अपने जमाने में इंदिरा दादी कोई गाय लाकर पूरी पार्टी और सहयोगियों से जयजयकार करवा लेतीं, इसमें संदेह ही संदेह है. आंटी के सामने क्या करात, क्या बर्धन, क्या लालू और क्या पासवान, स्वदेशियों की अंतरात्मा भी चरमरा गईं. इंदिरा जी को भान होता कि ऐसे नेता मंत्री बनकर खामोश हो जाएंगे तो मुझे लगता है कि समाजवादियों के टूटने का सिलसिला जेपी के आंदोलन के दौरान ही शुरू हो गया होता।
जो मित्र नजदीक से जानते हैं, वो मानते हैं कि मैं भी भाजपा को गाली देने और वामपंथियों की तारीफ करने के लिए पैदा हुआ हूं. पत्रकारिता में आने का कारण भी वे यही मानते हैं. आज भाजपा की बात नहीं करूंगा क्योंकि इस पार्टी को लेकर मेरे नजरिया में कोई बदलाव नहीं आया है। कभी कभार संसद सत्र के दौरान शौकिया ही सही, टीवी पर सीधा प्रसारण देखना मुझे भाता है. इसलिए नहीं कि मैं भी वहां जाना चाहता हूं बल्कि इसलिए कि मैं अपने राज्य के कुछ नेताओं को वहां तलाशता हूं कि वे सत्र में आते भी हैं या नहीं. आ गए हों तो कुछ बोलते हैं या मेज बजाकर ही चले आते हैं।
टीवी पर देखते ही देखते शेखावत जी के लिए मन में बहुत सम्मान आ गया. शेखावत जी ने सदन को जिस तरह से चलाया, वे सोमनाथ दा से काफी आगे निकल गए. ये बात है कि शेखावत जी के सदन में ज्यादा सज्जन लोग होते हैं जबकि सोमनाथ दा को बहस के अलावा झगड़े भी सुलझाने होते हैं. फिर भी उच्च सदन में बगैर ज्यादा विवाद में फंसे पार्टी के लठैतों को काबू में रखने की जो समझ-बूझ उन्होंने दिखाई, उसमें भाजपा की बदबू दूर तक नहीं आती. सोमनाथ दा तो हर बार भाजपा की चाल में फंस ही गए. मुसीबत में सरकार को वे क्या निकालते, सरकार को उनका संकटमोचक बनना पड़ा.शेखावत जी ने अपनी पार्टी के लिए किसी को नाराज नहीं किया।
खैर, अब सोनिया जी की खास भरोसेमंद देश की पहली महिला राष्ट्रपति चुन ली गईं हैं. वे इसे देश की महिलाओं का सम्मान बता रहीं हैं. महिला आरक्षण बिल लटकाए बैठी सरकार की मार्गदर्शक सोनिया जी की पसंद पर वामपंथी हां भर देते तो शिवराज पाटिल इस पद पर जाते. शिवराज जी के बाद भी कई और नाम कॉमरेडों को पसंद नहीं आए तो हारकर प्रतिभा जी को आगे लाया गया. अब, ये तो सोनिया जी ही बता सकती हैं कि देश की महिलाओं का सम्मान क्या उनकी प्राथमिकता में सबसे नीचे और अंतिम विकल्प है. इतना तरस खाकर देश की महिलाओं को सम्मान देने की कोई जरूरत तो थी नहीं. सोनिया जी, यह मेहरबानी क्यों...?

अब तो राहुल भैया की अम्मां मुझे इंदिरा दादी से भी भारी होशियार लगने लगीं हैं. उम्मीद थी कि जैसे सोनिया जी ने त्याग किया था, भांति-भांति के आरोपों से परेशान होकर प्रतिभा जी खुद ही ना बोल देंगी. अपने जमाने में इंदिरा दादी कोई गाय लाकर पूरी पार्टी और सहयोगियों से जयजयकार करवा लेतीं, इसमें संदेह ही संदेह है. आंटी के सामने क्या करात, क्या बर्धन, क्या लालू और क्या पासवान, स्वदेशियों की अंतरात्मा भी चरमरा गईं. इंदिरा जी को भान होता कि ऐसे नेता मंत्री बनकर खामोश हो जाएंगे तो मुझे लगता है कि समाजवादियों के टूटने का सिलसिला जेपी के आंदोलन के दौरान ही शुरू हो गया होता।
जो मित्र नजदीक से जानते हैं, वो मानते हैं कि मैं भी भाजपा को गाली देने और वामपंथियों की तारीफ करने के लिए पैदा हुआ हूं. पत्रकारिता में आने का कारण भी वे यही मानते हैं. आज भाजपा की बात नहीं करूंगा क्योंकि इस पार्टी को लेकर मेरे नजरिया में कोई बदलाव नहीं आया है। कभी कभार संसद सत्र के दौरान शौकिया ही सही, टीवी पर सीधा प्रसारण देखना मुझे भाता है. इसलिए नहीं कि मैं भी वहां जाना चाहता हूं बल्कि इसलिए कि मैं अपने राज्य के कुछ नेताओं को वहां तलाशता हूं कि वे सत्र में आते भी हैं या नहीं. आ गए हों तो कुछ बोलते हैं या मेज बजाकर ही चले आते हैं।
टीवी पर देखते ही देखते शेखावत जी के लिए मन में बहुत सम्मान आ गया. शेखावत जी ने सदन को जिस तरह से चलाया, वे सोमनाथ दा से काफी आगे निकल गए. ये बात है कि शेखावत जी के सदन में ज्यादा सज्जन लोग होते हैं जबकि सोमनाथ दा को बहस के अलावा झगड़े भी सुलझाने होते हैं. फिर भी उच्च सदन में बगैर ज्यादा विवाद में फंसे पार्टी के लठैतों को काबू में रखने की जो समझ-बूझ उन्होंने दिखाई, उसमें भाजपा की बदबू दूर तक नहीं आती. सोमनाथ दा तो हर बार भाजपा की चाल में फंस ही गए. मुसीबत में सरकार को वे क्या निकालते, सरकार को उनका संकटमोचक बनना पड़ा.शेखावत जी ने अपनी पार्टी के लिए किसी को नाराज नहीं किया।
खैर, अब सोनिया जी की खास भरोसेमंद देश की पहली महिला राष्ट्रपति चुन ली गईं हैं. वे इसे देश की महिलाओं का सम्मान बता रहीं हैं. महिला आरक्षण बिल लटकाए बैठी सरकार की मार्गदर्शक सोनिया जी की पसंद पर वामपंथी हां भर देते तो शिवराज पाटिल इस पद पर जाते. शिवराज जी के बाद भी कई और नाम कॉमरेडों को पसंद नहीं आए तो हारकर प्रतिभा जी को आगे लाया गया. अब, ये तो सोनिया जी ही बता सकती हैं कि देश की महिलाओं का सम्मान क्या उनकी प्राथमिकता में सबसे नीचे और अंतिम विकल्प है. इतना तरस खाकर देश की महिलाओं को सम्मान देने की कोई जरूरत तो थी नहीं. सोनिया जी, यह मेहरबानी क्यों...?
6 comments:
मज़ेदार स्टाइल. मज़ा आया. उम्मीद है विविध विषयों पर नियमित रूप से लिखेंगे.
नारद http://narad.akshargram.com/, ब्लॉगवाणी http://www.blogvani.com/और चिट्ठाजगत http://www.chitthajagat.in/जैसे एग्रीगेटरों पर अपने ब्लॉग को डालने की व्यवस्था शीघ्र करें, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग आपको पढ़ सकें.
ब्लागिंग की दुनिया में स्वागत, शुभकामनाएं।
chalo mai to waise bhi tumhari lekhani ka kaayal raha hu, blog ki dunia se pahli baar awagat hua hu! kabhi prayaash hi nahi kia tha, dhanyabaad tumhe padhane ke saath saath blog ki duniya se awagat hua. likhate raho bebak!
iugo
नेट पर पहली बार अपनी बात कहते हुए खुश हूं ़शुिक्रया िरतेश़ लेख अच्छा है़ जारी रखाे़
good work , keep it up !
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